पुण्य संवर्धनाच्चापि पापौघपरिहारत। पुष्कलार्थप्रदानार्थ पुष्पमित्यभिधीयते।।
अर्थ- इसका मतलब है पुण्य को बढ़ाने, पापों को घटाने और फल को देने के कारण ही इसे पुष्प या फूल कहा जाता है।
दैवस्य मस्तकं कुर्यात्कुसुमोपहितं सदा।
अर्थ- देवता का मस्तक या सिर हमेशा फूलों से सुशोभित रहना चाहिए।
पुष्पैर्देवां प्रसीदन्ति पुष्पै देवाश्च संस्थिता
न रत्नैर्न सुवर्णेन न वित्तेन च भूरिणा
तथा प्रसादमायाति यथा पुष्पैर्जनार्दन।
अर्थ- देवता लोग रत्न, सुवर्ण, भूरि, द्रव्य, व्रत, तपस्या या और किसी चीज से उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना फूल या पुष्प चढ़ाने से होते हैं।
श्री शनि अमावस्या महोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं आप परिवार सहित सादर आमंत्रित है श्री शनिधाम असोला फतेहपुर बेरी छत्तरपुर मेट्रो से 5 किलोमीटर 18 नवम्बर 2017 सुबह 6बजे से रात्रि 12बजे तक करे दर्शन-पूजन आपका कल्याण होंगा अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करे 9910692003,9958794885,watsapp no 9910692004
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न रत्नैर्न सुवर्णेन न वित्तेन च भूरिणा
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